योग की जड़ें भारत में कितनी गहरी हैं, ये इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लगभग सारे जैन या बौद्ध गुरुओं की मूर्तियां योग मुद्राओं में ही मिलती हैं। उनसे भी पुरानी योग मुद्राएं मिलीं सिंधु सभ्यता की मोहरों पर, योग करती हुए कई चित्र या कलाकृतियां उन पर बनी हुई हैं। ऐसी ही एक शिव की मूर्ति भी मिली, जिसमें उनके सर पर सींगों का मुकुट है और वो एक सिंहासन पर हठ योग की कमल मुद्रा में पैरों को करके बैठे हैं। इस मूर्ति को हठयोगी की की मूर्ति कहकर शिवपूजा से जोड़ा जाता है, आसपास कई जानवरों के चित्र बने हैं इसलिए पशुपति भी कहा गया। लेकिन नब्बे के दशक में जो मिला, उससे योगा की प्राचीनता पर कोई गुंजाइश ही नहीं रह गई। ये था योग मुद्रा में जमीन में दबा एक कंकाल। जो मिला था राजस्थान के बालाथल में।
कार्बन डेटिंग से इस कंकाल की उम्र निकाली गई जो करीब 2700 साल पहले की आई। हालांकि ये सिंधु सभ्यता के खत्म होने के बाद के दिनों की हो सकती है, लेकिन फिर भी भारत के इतिहास में एक योगी का योग मुद्रा में कंकाल मिलना वाकई में नई बात थी। हो सकता है उसने लोकमान्य तिलक की तरह समाधि ली हो, लोकमान्य तिलक की इस तस्वीर से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि लोग कैसे किसी विशेष योग मुद्रा में भी देह को त्यागते आए हैं। ये पदमासन है, ठीक वैसी ही जैसी सिंधु सभ्यता के हठयोगी की है, राजस्थान के बालाथल में मिला कंकाल भी पदमासन में है लेकिन ज्ञान मुद्रा में। आप इन तीनों तस्वीरों में इन तीन घटनाओं से जान सकते हैं कि हजारों साल से भारत में योग चल रहा है।
बालाथल में जो योगी का कंकाल मिला है, उस साइट को सबसे पहले वीएन मिश्रा ने 1962-63 में खोजा था, उसका सर्वे किया था। लेकिन खुदाई शुरू हो पाई 1994 में, जो पुणे के डेक्कन कॉलेज पीजी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के डिपार्टमेंट ऑफ आर्कियोलॉजी और इंस्टीट्यूट ऑफ राजस्थान स्टडीज ने ज्वॉइंट प्रोजेक्ट के तहत की। दरअसल ये स्थान उदयपुर से 42 किमी दूर और बल्लभ नगर से केवल 6 किमी दूर है। इसे बनास और आहार सभ्यता से जोडा गया, जिसका कनेक्शन उस वक्त के हड़प्पा नहरों से हो सकता है। क्योंकि इस जगह का काल 4500 साल पहले करीब लगाया जा रहा है। इस खुदाई में योगी समेत कुल पांच कंकाल पाए गए थे। जिनमें से एक का सैक्स पता नहीं चल पाया, दूसरा एक पचास साल के पुरुष का था, जिसके घुटनों में कोई समस्या रही होगी। तीसरा एक पैंतीस साल की महिला का था, उसके सर के पास एक लोटा रखा पाया गया, शायद कोई प्रथा रही होगी। जबकि एक और कंकाल से रिसर्चर्स ने अंदाजा लगाया था कि इसे लेप्रोसी या कोढ़ रहा हो सकता है। ये भी भारत में कोढ़ का सबसे पुराना मामला माना गया है।
एक और दिलचस्प बात ये है कि इस साइट पर मिला योगी कंकाल अगल 2700 साल से लेकर 4500 साल पुराना है तो वो वैदिक युग से भी पहले चला जाता है, जबकि वेदों में योग का जिक्र नहीं मिलता है। ऐसे में वेदों या वैदिक युग की तिथि और भी पीछे चली जाती है, जो अभी तक ईसा पूर्व 1500 साल पहले के आसपास की आंकी गई है। इसलिए अभी तक जो भी इतिहास पढ़ाया जा रहा है, उसमें सुधार की तमाम गुंजाइशें बनी रहेंगी। ये भी अचम्भे की बात है कि अगर आप कंकाल के हाथों की उंगलियों को ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि इस योगी कंकाल के अंगूठे सबसे छोटी उंगली को छू रहे हैं, योग में इसे ज्ञान मुद्रा कहा जाता है। करीब तीन हजार साल तक ना हड्डियों का कुछ बिगड़ना और ना ही योग मुद्रा में रत्ती भर भी बदलाव आना वाकई में चौंकाने वाला है। आप शिव की तमाम मूर्तिय़ों और चित्रों में इसी मुद्रा को देख सकते हैं। शिव को इसीलिए आदियोगी कहा जाता है। मेडिटेशन करने और समाधिलीन होने की ये मुद्रा हजारों साल से प्रचलन में है, लोकमान्य तिलक को इसी मुद्रा में समाधिलीन किया गया था। उम्मीद है कि इतिहास में होने वाले नए खुलासे योगा के इतिहास को और भी समृद्ध करेंगे।
विष्णु शर्मा
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